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उपन्यास / भाषण
उपस्थित सभी गण्यमान्य व्यक्तियों और यहाँ मौजूद वरिष्ठों को मेरा सादर प्रणाम।
सबसे पहले, मैं श्री ब्रजेश भाई का बहुत शुक्रगुजार हूँ, क्योंकि उन्होंने आज मुझे इस मंच पर अपने विचार आप सबके सामने रखने का मौका दिया। सच कहूँ तो, मैंने यह मौका उनसे खुद माँगा था। मैं चाहता था कि प्यार-मोहब्बत और झूठी कहानियों को छोड़कर, मैं आपके सामने कुछ सच्चाई की बातें या फिर 'तस्वीर का दूसरा रुख' पेश कर सकूँ।
यह मेरी समझ से बाहर है कि आप मेरी बातों को कितना स्वीकार या समझ पाएँगे।जीवन क्या है, और रिश्तों का निर्वाह कैसे करना चाहिए—इन सब पर बोलने के लिए मैं स्वयं को एक नासमझ, अनुभवहीन और साधारण व्यक्ति मानता हूँ।
इसके बावजूद, मेरा प्रयास यही है कि मैं अपने विचारों और अपने मन की दुविधाओं को अपनी ही परिभाषाओं के ज़रिए आप सबके सामने प्रस्तुत करूँ और आपको समझाने का प्रयास कर सकूँ।
जिंदगी क्या होती है, रिश्तोंको कैसे निभाना है, इन सब के बारे में बात करने केलिए मैं तो एक गवार, अनपढ़, लाचार, बेसहारा और ना समझ हूं । फिर भी मेरा कोशिश है की आपको मेरे विचारो तथा मेरे मन की दुविधावोंको मेरे मन की परिभाषवों के द्वारा आप के साथ बताना चाहता हू।
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